कितने सामान कर लिए पैदा एक छोटी सी ज़िंदगी के लिए!
दोस्तों यह शेर जिस किसी ने भी लिखा है, बहुत ख्हूब लिखा हैl
शायद इस खूबसूरत शेर को लिखने के पीछे शायर के दिमाग में कहीं न कहीं भातिकतावाद का दुष्प्रभाव ही रहा होगाl
हम सब ने खुद को इस भौतिक संसार में इतना खो दिया है की हमारे पास न तो अपनों
के लिए और न ही खुद के लिए, कोई समय नहीं है l प्रकृति की तो बात ही छोडो ! सुबह से देर रात तक वही भाग दौड़
और समय न होने की शिकायत!
आखिर इस सब के पीछे कौन ज़िम्मेवार है?
उपरोक्त शेर ने इस प्रश्न का जवाब बाखूब दिया है:
‘कितने
सामान कर लिए पैदा एक छोटी सी ज़िंदगी के लिए’
अर्थात हमने खुद को मैनेज नहीं किया है l
हमने अपने कार्य का शेडूल इतना व्यस्त कर लिया है की हम दो-तीन दिन का काम सिर्फ एक घंटे में खत्म करना चाहते हैंl
कसूर किसका
है ??? आपका ही न?
तो समय को अपनी सहूलियत के मुताबिक बाँट लो और उसी के अनुसार काम करो, नहीं तो भाई टेंशन में ही रहोगेl
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