शनिवार, 31 अक्तूबर 2015





यूँ होता तो यूँ होता, यूँ होता तो यूँ होता!!!
कई बार जीवन में ऐसा लगता है कि मन उचाट हैयानि मन बेचैन है!
कोई भी काम आरम्भ करोमन उस कार्य पर एकाग्र ही नहीं होता 
आराम करने के लिए लेट जाओतब भी शरीर और मन में समन्वय नहीं बन पा रहा होता है 
भले ही आप किसी भी व्यवसाय में हों या  भी हो 
आप एक विद्यार्थी भी हो सकते हैं१ आप अपनी पुस्तक खोलते हैंपढ़ने में मन एकाग्र नहीं हो पा रहा है 
ऐसे में क्या किया जाये ?
मुझे ऐसी अवस्था में वे लोग भी याद  रहे हैं जिनको मैंने देखा है कि वे हर अवस्था में परेशान ही रहते हैं परेशान रहना उनकी आदत बन जाती है
यदि आप उनसे उनके बारे में पूछो कि वे कैसे हैं तो उनका एक ही उत्तर होता है:
"बस यार सुबह से अब तक परेशान ही हूँ !"
यदि आप उनका हाल चाल पूछो तो कहेंगे: "बस ठीक हूँ, वक़्त को धक्का दे रहा हूँ
अब आप यह सोच रहे होंगे कि मै इन लोगों  के बीच में से कैसे निकलूंगा और आप को आगे कोई समाधान बताऊंगा या नहीं  !
मै बस इतना बताना चाहता हूँ कि इस प्रकार कि स्थिति कभी-कभार शायद हम सब के साथ भी उत्पन्न होती है
ऐसे में मेरा अनुभव तो यह कहता है कि उस समय जब आप बेचैन हो तो कुछ भी कार्य जो रुका हुआ है उसे करने लग जाओ
यदि कार्य नहीं करना है तो आप घर से बाहर  निकलो और लोगों से मिलो या घूमने निकल जाओ 
आप अवश्य ही बेहतर अनुभव करोगे
कई बार घर में कैद होना भी मायूसी पैदा करता है
यदि आप विद्यार्थी  हैं और पढाई करने में आप का मन नहीं है तो दोस्तों के साथ बातें कीजिये या अन्य कार्य जो आपका मन बहलाये
परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि आप अपना मन बहलाने के लिए बाहरी दुनियां में इतने खो जाओ कि आप अपने लक्ष्य को भूल कर उसी संसार में लीन हो जाओ जिसका उद्देश्य केवल यही है: 'खा लो, पी लो, गप्पें हांक लो और सो जाओ!' 
यह उदेश्श्य प्रगतिशील मानव का नहीं हो सकता १ 
आप रिलैक्स होने के लिए थोड़ी देर के लिए यथार्थ कि दुनियां से दूर जा सकते हो, परन्तु आप को हर हाल में इस धरा के तल पर  अपने पांव रखने हैं और खो जाना है यथार्थ की दुनियां में अपने उद्देश्य को पूरा करने में १ 

मुझे इस सन्दर्भ में अमेरिका के एक महान कवि Robert Frost की प्रसिद्ध पक्तियां याद आ रही हैं:  
               'Woods are lovely, dark and deep,
               And I've my promises to keep,
               And miles to go before I sleep,
               And miles to go before I sleep!'
यदि आप गृहणी हैं तो प्रयत्न कीजिये कि आप अपने पति व् बच्चों के साथ कहीं घूमने चले जाएँ 
कहने का तात्पर्य यह है कि आप अपना मनोरंजन कीजिये
आप उदास इस लिए हैं कि प्रतिदिन की दिनचर्या से आप उक्ता गए हैं , आप इसमें कुछ नया कीजिये जिससे दिनचर्या दिलचस्प हो जाये
यदि आप किसी समस्या से जूझ रहे हैं तो उसका समाधान निकालिये यदि ऐसा कुछ आप कर सकते हैं
यदि आप के पास उस समस्या का कोई समाधान नहीं है तो उसे ईश्वर के हवाले कर दीजिये और भूल जाइये उस के बारे में

जो भी होगा अच्छा होगा बस यह मान लीजिये!




शनिवार, 24 अक्तूबर 2015

Are the messages advising to stay positive in life irritating to you?

It's easy to preach than practise.
This line truly explains the meaning that we all know.
Despite that, people keep on preaching and offering advice and long lectures on 'dos' and 'don'ts.'
I'm writing this article because I feel the urge to explain what I have, at present, in my mind.
While taking bath, a thought hovered in my mind that there are lots of books on moralizing and many other topics. Then why should I write anything and make it public on a blog-site?
After sometime I had my answer.
That's why I am here to share my views with you!
My topic is why people keep on offering long advice to the ones who are in some problem or when they tell them about their problem.
In my opinion, some people offer free advice because they want to show to you that they are well-informed and they have very good knowledge.
There are some others who may be sincere to you and offer what they know about the solution to your problem. Such people are not irritating, but they become irritating when they feel flattered to offer their advice.
You must have got so many messages on your mobile phones through Whats-app about several thoughts advising you to be positive in life.
You may have also experienced that it seems rather impossible to stay POSITIVE all the time.
The clouds of negative thoughts also enter our mind to dampen our spirit.
In that situation, those messages about being positive might sound useless, but in my opinion, you should not think them so.
Those messages advising you to be positive in life always serve as reminders to you that you should try to discard negative thoughts from your mind and divert your attention from them to the beautiful things God has provided us with. You may think about the beautiful smile of a child; you may try to come in the open under the blue sky and look at so many activities going on around you.
But this advice may seem futile to some of the people because they may have read or heard somewhere: "If you are sad, the whole world looks sad to you."
My dear friends, you must realize that it is easy to remain in sadness for ever, but why?
Our mind does not feel happy in sad situation.
It's not natural for us to remain angry,jealous, and so on for a long period. After all one has to change one's mindset, that is from negativity to positiveness.
THE GIST OF THIS WRITE-UP IS THAT CONSTANTLY THINKING ABOUT POSITIVENESS AND DELIBERATELY TRYING TO STAY POSITIVE CERTAINLY HELPS US TO BECOME FULLY POSITIVE IN LIFE.

बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

आप अपने आप को कैसे जानोगे कि आप गलती पर हो ?

आपने अक्सर बच्चों को, बूढ़ों को, नौजवानों को अक्सर यह कहते सुना होगा: 
"मै जो कुछ भी कहता हूँ वह सही होता हैi"  
"आपको तो बस मुझ में ही दोष नज़र आते हैं!"
"मै हमेशा अंतरात्मा की आवाज़ सुनता हूँ....और मै जो कुछ भी कहता हूँ या करता हूँ ठीक होता है I" 
दोस्तों, क्या आपने यह जानने का प्रयत्न किया है कि आप कब गलत होते हो और कब सही?
मै यह भी मानता हूँ कि आप में से बहुत से पाठक सही भी होते होंगे और अपने आप को सही पहचानते होंगे 1 
परन्तु कुछ दोस्त शायद यह जानना चाहेंगे कि हम अपने आप को कैसे पहचानें कि हम सही हैं या गलत I
चलो प्रयत्न करते हैं आपको  यह सब बताने का 1  
आप स्वयं को तीन मापदंड पर परखिये 1  
पहला मापदंड है लीगल अथवा क़ानूनी 1 
दूसरा है सामाजिक 1 
तीसरा है नैतिक1  
यदि आप अपनी वाणी या किर्या से देश का कानून तोड़ते हो तो आप गलती पर हो 1 
यदि आप सामाजिक परम्परा या व्यवश्था तोड़ रहे हो तो भी आप गलती पर हो सकते हो 1 
'हो सकते ' शब्द का प्रयोग मैंने इस लिए किया है कि समाज कि कुछ परम्पराएँ पुरानी तथा अर्थहीन हो सकती हैं, जो आधुनिक  परिवेश में मेल न खा रही हो तो आप इस माप दंड के अनुसार ठीक हो सकते हो यदि आप तीसरे मापदंड के अनुसार भी सही हो 1 
तीसरा मापदंड बहुत ही अनिवार्य है 1 
यह नैतिक और मानवीय मूल्यों से बना मापदंड 1 
यदि आप इस मापदंड के अनुसार खरे नहीं उतरते तो आप बिलकुल गलती पर हो 1 
उदाहरण के तौर पर जब संतान अपने माता पिता या घर के बुज़ुग सदस्यों के सामने बहस कर रहे होते हैं तो एक नैतिक मर्यादा का उलंघन कर रहे होते हैं , भले ही उनका दृष्टिकोण या विचार सही भी क्यों न हो 1 
वे उस समय बिलकुल गलत हैं1  
नैतिक मूल्यों की कमी होने के कारण या इन्हे पहचानने में अनदेखी होने के कारण ही समाज में अपराध बढ़ रहे है 1 
लोग जानते हुए भी कि वे गलत काम कर रहे हैं, फिर भी वे उसी गलत मार्ग पर चल रहे होते है 1 
इसका एक कारण यह भी है कि जो लोग  ऐसा कर रहे हैं, वे जानते हैं कि कोई उन्हें देख नहीं रहा है 
या वे अपने समाज से कही दूर रह रहे है जहाँ उन्हें किसी समाज का डर  नहीं  है 1  
उन्हें पता है कि कुछ नैतिक मूल्य अगर वे तोड़ भी दें तो इस पर उन्हें कोई सजा नहीं होने वाली 1  
नैतिक मूल्यों को मानने वाला व्यक्ति  धार्मिक प्रवृति का भी होता है और यह होना भी अति आवश्यक है  1 
ऐसा व्यक्ति सदैव ईशवर से डरता है और नैतिक मूल्यों का उलंघन कभी भी नहीं करता  1  
दोस्तों मैंने  अपने विचार तो व्यक्त कर दिए  हैं, अब  आपकी  बारी  है अपनी प्रतिकिया  देने  की 1 
अपनी प्रतिकिर्या अवश्य लिखिए!   

रविवार, 18 अक्तूबर 2015

अपनी छुपी हुई क्षमताओं को जागृत कीजिये !

Ignite Your Hidden Potential
माँ देवी सरस्वती की अपार कृपा से इंसान के मस्तिष्क में अनेकों  संभावनाएं छिपी हुई हैं I
हम इन संभावनाओं को साकार कर सकते हैंI
प्रश्न यह उठता है कि कैसे?
आज का मानव भौतिक संसार में इतना अधिक लीन हो गया है कि उसके पास समय ही नहीं रहा है कि वह अपने अंदर के संसार में प्रवेश कर सके I
वह सुबह जब उठता है तो उसका चित्त अनेकों योजनाओं में डूबा होता है I
वह सोच रहा होता है कि आज उसे अमुक कार्य करना है: उसे वह कार्य  भी करना हैI
यानि सुबह से शाम तक वही उधेड़ बुन!
शाम को जब वह लौट कर अपने घर आता है तो काफी थक चुका होता हैI
अपने बच्चों, पत्नी और अन्य सदयों के साथ बात करने में भी उसे परेशानी होती है क्यों कि उस बात-चीत से उसे कोई धन लाभ तो होगा नहींI
कहने का अभिप्राय यह है कि आज के मानव को उसकी अपने द्वारा पैदा कि गई उलझने व समस्याएं ही उसे अपने अंतरमन में झाँकने से रोकती हैंI
   
  यदि मानव सुबह और शाम कुछ समय अपने लिए निकाले और और पूर्ण एकाग्र मन से माँ सरस्वती के ध्यान में लीन होकर बैठ जाये तो वह अपने व्यकित्त्व का   विश्लेषण कर सकेगा I
उसे अपने अंदर अनेकों दोष दिखाई देने लग जायेंगेI
ये दोष मानव सुबह से शाम तक अपने बाहरी संसार में अधिक व्यस्त होने के कारण तथा अपने चरित्र में नैतिक मूल्यों कि कमीं होने के कारण बढाता जाता हैI
जब मानव सुबह और शाम एकाग्र मन से बैठेगा तो उसे चाहिए कि वह सर्वप्रथम उन दोषों को दूर करना शुरू कर देI
जब अधिकतर दोष दूर होने लग जायेंगे तो उसे अपने अंदर छिपी अपार सम्बवनयों का भी ज्ञान होना आरम्भ हो जायेगा ...I (अभी शेष है ) 

Mental Health Awareness

Mental health refers to a person's psychological, emotional, and social well-being. It encompasses various aspects of life including ho...