रविवार, 3 अप्रैल 2016

सुख हैं तो दुःख भी होंगे!

हम सब जीवन को सरल और आसान शब्दों में परिभाषित करना चाहते हैं1
प्राचीन काल से कवियों लेखकों और दार्शनिकों ने जीवन को विभिन्न प्रकार से परिभाषित किया है 1
परन्तु अभी भी जीवन अपरिभाषित प्रतीत होता है

इसी लिए तो यह जटिल है ...कब क्या हो जाये...क्या स्थिति उत्पन्न हो जाये यह कोई भी नहीं बता सकता !
जितना हम उम्र में बड़ा होते हैं और तजुर्बे हासिल करते हैं, उतना ही हम ज़िंदगी के रहस्यों की गुत्थी को सुलझाना चाहते हैं1
ज़िंदगी उतनी ही उलझती चली जाती है और आदमी मृत्यु शैया पर भी शायद इसी के बारे में सोचता होगा1
इस सदर्भ में मुझे एक फिल्म  आनंद का एक गीत याद रहा है:
"ज़िंदगी कैसी है पहेली हाय,
कभी ये हंसाये, कभी ये रुलाये... !!"
प्रिय दोस्तों, अधिक मायूस होने की आवयश्कता नहीं हैं1
हम इसे टुकड़ों में समझना बेहतर समझेंगे1
आओ जीवन का एक साधारण सा पहलू लेते हैं1
हम सब सुख पसंद करते हैं और दुःख पसंद नहीं करते1
हम सब दुखों को जानबूझ कर आमंत्रित करना तो बिलकुल भी नहीं चाहते!
फिर भी वे हमारे जीवन में चुपचाप चले आते हैं और हम सबको उदास बना देते हैं1
इस अवस्था में, ज़रूरत इस बात की हैं कि दुखों का सामना सहजपूर्ण  तरीके से करना चाहिए1
यह सरासर हमारी भूल या बेवकूफी होगी अगर हम दुखों के लिए स्वयं को या दूसरों को दोषी ठहराने लगा जाएँ1 
अनेकों लोग विश्वाश करते हैं कि दुःख हमारे  पिछले जन्म के बुरे कर्मों का फल होता है1
उनमें से बहुत सा दुःख तो हम पूर्व जन्म में ही भोग चुके होते हैं और जो शेष रह गया था वह हम इस जन्म में भोगते हैं1
इसीप्रकार , इस जन्म में जो भी बुरे करम हमारे द्वारा किये जायेंगे, उन सबका परिणाम हमने इस जन्म में भोगना पड़ेगा1
यदि दुष्कर्म अधिक किये हैं तो उनका फल उसी अनुपात में हमें मिलता है ....यदि सारा फल जो दुखों के रूप में होता है इस जन्म में नहीं भोगा गया तो आने वाले जीवन में हिसाब चुकता करना पड़ेगा1
कितनी सरल और समझ आने वाली बात है ये जो हमारे   बुजुर्ग हमें समझते आये हैं1
वे सदैव कहते आये हैं1
"जैसा करोगे, वैसा भरोगे1"
"पाप का घड़ा कभी तो भरता और फूटता है1 "
कितनी सटीक कहावते हैं ये!
परन्तु हम विज्ञान कि दृष्टि से इन्हे अन्धविश्वाश की  संज्ञा देते हैं1
भले ही अन्धविश्वाश है ये फिर भी लाभकारी है ये !
दुखों क़ी प्रकिर्या से गुजरना धुंध क़ी सफ़ेद अंधकार से भरे वातावरण में से गुज़रने के समान हैं1
ऐसे में यदि हम अपनी कार ड्राइव कर रहें हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि हम एक सफेद गुफा में से गुज़र रहे हैं जिसमें हमें कुछ नज़र नहीं आता1
हम केवल धीरे धीरे अपनी कार को आगे बढ़ाते हुए गुफा में से बाहर आने का पर्यटन कर रहे हैं1
हमने केवल अपने साहस, सब्र और चौकसी का परिचय देना है ताकि हम विजयी होकर उस गुफा से बाहर निकल सकें1
हम यह तो नहीं कर सकते कि अपनी गाड़ी को रोक कर वहीँ खड़े हो जाएँ और उस विकट  पर   परिस्थिति का मातम मानते रहें!
परन्तु कुछ समय पश्चात, वे धुंध के घने बादल छट जाते हैं और सूर्य देवता उन बादलों को चीरता हुआ इस धरा को रोशनमय कर देता है1
हमें यह प्रतीत होता है कि जैसे धुंध के बदल वातावरण में कभी थे ही नहीं !     
ठीक इसी प्रकार से दुखों के बादल  भी हमारे जीवन से गायब हो जाते है1
जब दुःख गायब हो जाते हैं तो हम सब दुखों की कल्पना भी नहीं करना चाहते1
बस आवश्यकता होती है सब्र की, साहस की और उपरवाले में अटूट विश्वाश की1 
बिना दुःख के सुख की महत्वता बिलकुल भी नहीं है1
हमें सुख की कीमत का पता केवल दुःख के समय ही चलता है1
जब हमारा सामना दुखों के साथ हो रहा होता है, तो उस समय हमें यह जानने का प्रयत्न करना चाहिए कि वे क्या कारण थे जो दुखों की वजह बने1
एक बार वे कारण हमें ज्ञात हो जाएँ तो फिर हमें नुक्सान की भरपाई में लग जाना चाहिए और उन कारणों से सीख लेनी चाहिए ताकि भविष्य में पिछली गलतियों   को दोहराया जाये!
कभी-कभी हमें असुखद और विपरीत परिस्थिति का सामना दूसरों के कारण भी करना पड़ जाता   है1
उस स्थिति में हमें उन लोगों के साथ अधिक देर तक उलझना नहीं चाहिए1
उनकी अवहेलना करना ही समझदारी होता है1
केवल दुःख का मातम मानते रहना और दूसरों के साथ उलझते रहने से समस्या का हल निकलने वाला नहीं है1
इससे केवल आप अपने मन की शांति भंग करोगे अपितु अपने परिवार की भी1
आपका काम अथवा रोज़गार भी प्रभावित होगा1
आओ जीवन को सुखद, सहज, सरल और रोचक बनायें1

समस्याओं का समाधान विवेकपूर्ण ढंग से करें!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

The Clever Farmer and the Greedy Merchant

  The Clever Farmer and the Greedy Merchant A simple farmer named Raghav lived in the vibrant village of Suryapur, nestled along the lush ...