मंगलवार, 7 जून 2016

...how to react to unsavoury remarks.

Pupil: Sometimes our own near and dear ones say something that hurts and pinches us so much that we get irritated and intend to react immediately in the same tone. Several times we do so, but that spoils the mood and our day gets lost somewhere because those words keep on haunting our mind. Whenever we think to enjoy our present time, those words of the past appear before our inward eye and dance like specters horrible.
What is the solution to it?
Teacher: What do you want?
Pupil: I want peace of mind. I want to enjoy my present time quite oblivious of the unsavoury things.
Teacher: Then, why do you complain about this. Forget the incident and enjoy your present.
Pupil: I want to set him or her right?
Teacher: How can you set others right without setting yourself right?
Pupil: I have not understood your point Guruji.
Teacher: It is very simple. Suppose you react at once in the same tone to make him or her irritated because you yourself have got the one. It would not decrease your irritation, rather the Satan in you will be pleased and he will keep on inciting you to do such negative activities.
On the other hand, if you console yourself by making you understand that that person has very little sense of behaviour. He or she has not got broad mind to behave with people in a courteous manner. So it is not his or her fault. So why make myself irritated?
Pupil. Thank you Guruji. I would follow it now and make my life go smoothly and peacefully.



बुधवार, 4 मई 2016

दिलोदिमाग़ Thoughts versus Emotions

ईश्वर ने दिल को ऊंचा स्थान नहीं दिया है1 यह स्थान दिमाग को ही दिया है1 इसीलिए दिल की सुनो परन्तु उसपर अमल सोच समझ कर करो नहीं तो गलतियां होती रहेंगी और आप कहोगे:
ज़रा सी बात पे हर रस्म तोड़ आया था,
दिल-ए-तबाह ने भी क्या मिज़ाज पाया था !!
-जाँ निसार अख़्तर..

मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

The Superior Way To Live Life!

There have been good points as well as negative points in civilizations of the world. We should imbibe in us the good points of them.
In western civilization, there has been an emphasis on materialism and they have explored it to the optimum while the Orientals have explored the spiritual field to the optimum.
Material world, although indispensable, brings forth many evils and makes our life infested with them while the spirituality cures the evils born out of materialism, and in this way it is the superior way of living on the planet Earth without much tension. Tension does come in our life as we have to adopt materialism also to become a part of the mainstream of life, but it is released with our spiritualistic beliefs!
Spiritualism helps us win over the irrelevant desires and keeps us away from the mad race of materialism!
प्रत्येक सभ्यता में कुछ बुराइयां भी होती हैं और कुछ अच्छाइयां भी १
हमें अच्छाइयों को अपनाना चहिये१
पश्चमी सभ्यता के लोगों ने भौतिकता वाद पर अधिक बल दिया है जब कि हमारी सभ्यता में अध्यातिमकवाद पर अधिक बल दिया है १
यदि हम अध्यातिमकता पर चलें तो भौतिकतावाद से जो बुराई पैदा होती है उस-से बचा जा सकता है!
आध्यातिमकतावाद से मन पर विजय प्राप्त कि जा सकती है जब कि भतिकतावाद हमें पैसे और अन्य भौतिक वस्तुओं के भोग और उनके अधिपत्य क़ी एक पागलपन वाली दौड़ में शामिल कर देता है!
इस प्रकार से हम भौतिकतावादी होते हुवे भी आध्यातिमकता के मार्ग पर चल सकते हैं!

रविवार, 24 अप्रैल 2016

इंसान गलतियों का पुतला है

इंसान गलतियों का पुतला है......गलतियां कोई कार्य करते समय हो सकती है हमारे आचरण में हो सकती हैं, हमारी वाणी के कारण हो सकती हैं तथा हमारे स्वभाव में आये अचानक बदलाव के कारण हो सकती है क्यों  कि आज के युग में हर इंसान किसी न किसी तरह के दबाव व् तनाव का शिकार है1
सबसे बड़ी बात है कि हम अपने व्यवहार का मुल्यांकन करें पर अपनी गलती का एहसास होते ही उसे मान लें1
इससे और बड़ी बात यह है कि हम गलती करने वाले को दिल से क्षमा भी कर दें ये सोच कर कि गलती तो हमसे भी होती है और अपने रिश्ते को और मजबूत करने के रस्ते पर आगे बढ़ जाएँ!

बुधवार, 13 अप्रैल 2016

...why some people always remain enthusiastic and spirited?

Have you ever thought why we aren't always the same i.e. full of enthusiasm and hope? Some of the people who always remain spirited may be an exception.
Our mind is the source where from all thoughts emerge and then the processing of those thoughts is very much necessary; otherwise, those crude thoughts will find manifestation in several forms. Those will come out in the shape of speech, actions or remain in the mind in silent mode.
If the person is religiously and morally strong, there is very less chance that the crude thoughts take place in the mind or they succeed in becoming mature without passing through the automatic filter of screening crude thought.
To make our moral fiber strong we need to be religious-minded. Then we must be habitual of doing introspection, studying great books and gaining much of wisdom from life-experiences.
The problem arises for the teen-agers whose thoughts are dominated by their emotions.
When any thought emerge in our minds, it is also pushed by the emotional urge. If the person does not give it time to pass through the screening filter, it comes out in the form of words, action or shape the outlook of the person.
I am talking about the ‘screening filter’ which is nothing but a phrase to describe the process that usually takes place in our minds to maintain a balance between thoughts and emotions so that our actions, speech and outlook towards life in general and towards other people becomes mature and exhibit wisdom.
The people who use this screening filter are supposed to be wise and rational in their behaviour.
Now I talk about those who always remain enthusiastic and energetic. These are the people who adhere to their time-table and certain principles of life. They do their activities according to their planning. They do not work randomly.
Their day begins with morning walk and by doing some physical exercises, yoga, meditation, etc. They do not break this routine. They have fixed time for eating, relaxing, entertainment and other activities. They have full emotional control and so they have very good eating habits.
Negative thoughts do come in their minds, but they channelize these into positive or rational activities. That’s why they remain enthusiastic and spirited.


रविवार, 3 अप्रैल 2016

सुख हैं तो दुःख भी होंगे!

हम सब जीवन को सरल और आसान शब्दों में परिभाषित करना चाहते हैं1
प्राचीन काल से कवियों लेखकों और दार्शनिकों ने जीवन को विभिन्न प्रकार से परिभाषित किया है 1
परन्तु अभी भी जीवन अपरिभाषित प्रतीत होता है

इसी लिए तो यह जटिल है ...कब क्या हो जाये...क्या स्थिति उत्पन्न हो जाये यह कोई भी नहीं बता सकता !
जितना हम उम्र में बड़ा होते हैं और तजुर्बे हासिल करते हैं, उतना ही हम ज़िंदगी के रहस्यों की गुत्थी को सुलझाना चाहते हैं1
ज़िंदगी उतनी ही उलझती चली जाती है और आदमी मृत्यु शैया पर भी शायद इसी के बारे में सोचता होगा1
इस सदर्भ में मुझे एक फिल्म  आनंद का एक गीत याद रहा है:
"ज़िंदगी कैसी है पहेली हाय,
कभी ये हंसाये, कभी ये रुलाये... !!"
प्रिय दोस्तों, अधिक मायूस होने की आवयश्कता नहीं हैं1
हम इसे टुकड़ों में समझना बेहतर समझेंगे1
आओ जीवन का एक साधारण सा पहलू लेते हैं1
हम सब सुख पसंद करते हैं और दुःख पसंद नहीं करते1
हम सब दुखों को जानबूझ कर आमंत्रित करना तो बिलकुल भी नहीं चाहते!
फिर भी वे हमारे जीवन में चुपचाप चले आते हैं और हम सबको उदास बना देते हैं1
इस अवस्था में, ज़रूरत इस बात की हैं कि दुखों का सामना सहजपूर्ण  तरीके से करना चाहिए1
यह सरासर हमारी भूल या बेवकूफी होगी अगर हम दुखों के लिए स्वयं को या दूसरों को दोषी ठहराने लगा जाएँ1 
अनेकों लोग विश्वाश करते हैं कि दुःख हमारे  पिछले जन्म के बुरे कर्मों का फल होता है1
उनमें से बहुत सा दुःख तो हम पूर्व जन्म में ही भोग चुके होते हैं और जो शेष रह गया था वह हम इस जन्म में भोगते हैं1
इसीप्रकार , इस जन्म में जो भी बुरे करम हमारे द्वारा किये जायेंगे, उन सबका परिणाम हमने इस जन्म में भोगना पड़ेगा1
यदि दुष्कर्म अधिक किये हैं तो उनका फल उसी अनुपात में हमें मिलता है ....यदि सारा फल जो दुखों के रूप में होता है इस जन्म में नहीं भोगा गया तो आने वाले जीवन में हिसाब चुकता करना पड़ेगा1
कितनी सरल और समझ आने वाली बात है ये जो हमारे   बुजुर्ग हमें समझते आये हैं1
वे सदैव कहते आये हैं1
"जैसा करोगे, वैसा भरोगे1"
"पाप का घड़ा कभी तो भरता और फूटता है1 "
कितनी सटीक कहावते हैं ये!
परन्तु हम विज्ञान कि दृष्टि से इन्हे अन्धविश्वाश की  संज्ञा देते हैं1
भले ही अन्धविश्वाश है ये फिर भी लाभकारी है ये !
दुखों क़ी प्रकिर्या से गुजरना धुंध क़ी सफ़ेद अंधकार से भरे वातावरण में से गुज़रने के समान हैं1
ऐसे में यदि हम अपनी कार ड्राइव कर रहें हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि हम एक सफेद गुफा में से गुज़र रहे हैं जिसमें हमें कुछ नज़र नहीं आता1
हम केवल धीरे धीरे अपनी कार को आगे बढ़ाते हुए गुफा में से बाहर आने का पर्यटन कर रहे हैं1
हमने केवल अपने साहस, सब्र और चौकसी का परिचय देना है ताकि हम विजयी होकर उस गुफा से बाहर निकल सकें1
हम यह तो नहीं कर सकते कि अपनी गाड़ी को रोक कर वहीँ खड़े हो जाएँ और उस विकट  पर   परिस्थिति का मातम मानते रहें!
परन्तु कुछ समय पश्चात, वे धुंध के घने बादल छट जाते हैं और सूर्य देवता उन बादलों को चीरता हुआ इस धरा को रोशनमय कर देता है1
हमें यह प्रतीत होता है कि जैसे धुंध के बदल वातावरण में कभी थे ही नहीं !     
ठीक इसी प्रकार से दुखों के बादल  भी हमारे जीवन से गायब हो जाते है1
जब दुःख गायब हो जाते हैं तो हम सब दुखों की कल्पना भी नहीं करना चाहते1
बस आवश्यकता होती है सब्र की, साहस की और उपरवाले में अटूट विश्वाश की1 
बिना दुःख के सुख की महत्वता बिलकुल भी नहीं है1
हमें सुख की कीमत का पता केवल दुःख के समय ही चलता है1
जब हमारा सामना दुखों के साथ हो रहा होता है, तो उस समय हमें यह जानने का प्रयत्न करना चाहिए कि वे क्या कारण थे जो दुखों की वजह बने1
एक बार वे कारण हमें ज्ञात हो जाएँ तो फिर हमें नुक्सान की भरपाई में लग जाना चाहिए और उन कारणों से सीख लेनी चाहिए ताकि भविष्य में पिछली गलतियों   को दोहराया जाये!
कभी-कभी हमें असुखद और विपरीत परिस्थिति का सामना दूसरों के कारण भी करना पड़ जाता   है1
उस स्थिति में हमें उन लोगों के साथ अधिक देर तक उलझना नहीं चाहिए1
उनकी अवहेलना करना ही समझदारी होता है1
केवल दुःख का मातम मानते रहना और दूसरों के साथ उलझते रहने से समस्या का हल निकलने वाला नहीं है1
इससे केवल आप अपने मन की शांति भंग करोगे अपितु अपने परिवार की भी1
आपका काम अथवा रोज़गार भी प्रभावित होगा1
आओ जीवन को सुखद, सहज, सरल और रोचक बनायें1

समस्याओं का समाधान विवेकपूर्ण ढंग से करें!

The Clever Farmer and the Greedy Merchant

  The Clever Farmer and the Greedy Merchant A simple farmer named Raghav lived in the vibrant village of Suryapur, nestled along the lush ...