Welcome to "Nurturing Minds," a transformative blog dedicated to exploring the intricacies of mental health and guiding you toward holistic well-being. With compassion, understanding, and evidence-based insights, we aim to empower individuals like you to navigate mental health challenges and discover the paths that lead to personal growth and fulfillment. Our blog delves into a wide range of topics, shedding light on various aspects of mental health and providing practical
सोमवार, 22 फ़रवरी 2016
शनिवार, 20 फ़रवरी 2016
अपनी ऊर्जा को व्यर्थ की सोच एवं व्यर्थ कार्यों में नष्ट न कीजिये! Do not waste your energy in useless thoughts and actions.( In English also)
अपनी ऊर्जा को व्यर्थ की सोच एवं व्यर्थ कार्यों में नष्ट न कीजिये!
मैं ऐसे कुछ लोगों को जानता हूँ जो अपने दिन की शुरआत बड़े ही सहज और शांत मन के साथ करते हैं १
मैंने ऐसे लोगों को भी देखा है जो अपने दिन की शुरुआत तनावपूर्ण ढंग से करते हैं१
आओ सबसे पहले उन लोगों से मिलते हैं जो अपना दिन तनावपूर्ण ढंग से आरम्भ करते हैं!
ऐसे लोग सबसे पहले अपने बच्चों और बीवी को सोते हुए देख कर तनाव में आ जाते हैं१
ये बुड़बुड़ाना आरम्भ कर देते हैं: "इनका तो कुछ नहीं हो सकता १ कितनी बार कहा है कि स्वयं शीघ्र उठोगी तो बच्चों को भी शीघ्र उठने की आदत हो जाएगी १ सारा दिन सोती रहती है १ मैं चार बजे जागा था....एक घंटे के लिए सैर भी कर आया...ये फिर भी सो रहीं है १ बच्चों को जगाकर उन्हें पढ़ा भी तो सकती है १"
ये महाशय रात को देर से सोते हैं और जल्दी उठ जाते हैं १ इन्हे नींद सही ढंग से नहीं आती क्यों कि जब ये रात को सोते हैं तो आने वाले कल के लिए ढेर सारी प्लानिंग कर के सोने का प्रयत्न करते है१
जब सोते समय कोई योजनाएं बनाने लगेगा तो नींद सही ढंग से नहीं आती १ रात को जब इनकी नींद बीच में टूटती है तो इनकी योजनाएं फिर शुरू हो जाती हैं १
जब सोते समय कोई योजनाएं बनाने लगेगा तो नींद सही ढंग से नहीं आती १ रात को जब इनकी नींद बीच में टूटती है तो इनकी योजनाएं फिर शुरू हो जाती हैं १
सुबह चार बजे इन्हे अपने बिस्तर से उठना ही पड़ता हैं क्योंकि नींद तो इन्हे आएगी ही नहीं!
सैर से लौटने के पश्चात ये अपनी ऊर्जा अपनी बीवी और बच्चों को जगाने में नष्ट करते हैं १
शेष दिन इनका कैसे बीतता होगा आप कल्पना कर सकते हैं १
बेहतर यह है कि रात को जब आप सोना चाहते हो तो कोई अपना मनपसंद संगीत सुनिए, ग़ज़ल सुनिए, गीत या भजन कम वॉल्यूम पर सुनना आरम्भ कीजिये और धीरे धीरे आप को नींद आ जाएगी1
कई लोगों को टीवी पर कोई प्रोग्राम देखते हुवे नींद आ जाती है1
सबसे बेहतर फार्मूला है कि आप दिन भर श्रम कीजिये और नींद आपको समय पर आ जाएगी1
कृपया अपना मन शांत रखिये1
अपनी समस्याओं से घिरे मत रहिये1
उनका विश्लेषण कीजिये1
जिस समस्याओं का हल आपके पास हैं, उनका समाधान निकालिये और जिनका नहीं हैं, आप अपने किसी विश्वाशपात्र मित्र के पास जाइये और सलाह लीजिये1
यदि फिर भी कोई समाधान न मिले तो सब कुछ ईश्वर पर छोड़ दीजिये और निश्चिन्त हो जाइये इस विश्वाश के साथ कि 'ईशवर जो भी करता है, हमारी भलाई के लिए ही करता है '
फिर चाहे दुःख मिले या सुख उसे उपरवाले की मर्ज़ी मान कर सहन कीजिये1
सुख या दुःख आते जाते रहते हैं1
ऐसा नहीं है कि दुःख सदैव हमारे जीवन में रहेंगे1
तो दोस्तों अपने जीवन को सहज और सरल बनाइये!!!
मैंने कुछ लोगों को सैर करते हुए देखा है १
कुछ लोग समूह में सैर करना पसंद करते हैं १
अगर आप इन लोगों को ध्यान से देखो और सुनो तो आप जान जाओगे कि इनमें एक लीडर-टाइप होता है जिसके पीछे-पीछे आठ दस और लोग बड़ी तेज गति के साथ चल रहे होते हैं 1
वह लीडर टाइप व्यक्ति ज़ोर-ज़ोर से बोल रहा होता हैं: किसी राजनैतिक पार्टी जिससे उसका कोई सम्बन्ध नहीं होता उसे कोस रहा होता है १ गालियां दे रहा होता है १ वह अपने आप को ज्ञानी मानता है और दूसरे जो उसके सामने मौन हैं उन्हें अज्ञानी १ कई बार तो उस व्यक्ति की बातें सुन कर उसके अपने ही ग्रुप में से उसकी बात को काट देता है: तो शुरू हो जाता है महाभारत!
कुछ लोग अकेले में या दो-तीन के समूह में सैर करते हैं बिलकुल चुप चाप१ ऐसे लोग अपने अंदर असीम ऊर्जा को संग्रहित कर रहे होते हैं १ ये ऊर्जा उनको दिन भर लाभ देती है 1
कई अध्यापक स्टाफरूप में बैठ कर अपने ख़ाली पीरियड में अपनी ऊर्जा को गप्पें मारने में नष्ट कर रहे होते हैं जब कि वे अपनी ऊर्जा को चुप रह कर या अपने अगले पीरियड की तैयारी करके अपनी ऊर्जा का सदुपयोग कर सकते हैं १
कुछ अध्यापक ख़ाली घंटी (Period) का प्रयोग नकारात्मक ढंग से करते हैं: इधर-उधर की बातें करके, मुखिया की कार्यशैली पर अपने कटाक्ष कर के, अपने प्रतिद्वंदी अध्यापक पर व्यंग भरे कटाक्ष कर के या राजनीति या कोई और चर्चा कर के !
कुछ अध्यापक ख़ाली घंटी (Period) का प्रयोग नकारात्मक ढंग से करते हैं: इधर-उधर की बातें करके, मुखिया की कार्यशैली पर अपने कटाक्ष कर के, अपने प्रतिद्वंदी अध्यापक पर व्यंग भरे कटाक्ष कर के या राजनीति या कोई और चर्चा कर के !
ठीक है राजनैतिक चर्चा भी करनी होती हैं, परन्तु जब आप स्वयं को ख़ाली पाओ यानि जब अपने सभी कार्य सही कर रखे हों १
विद्यार्थी भी अपनी ऊर्जा को व्यर्थ में नष्ट करने में पीछे नहीं हैं१
जब अध्यापक कक्षा में पढ़ा रहे होतें हैं तो उनमें से बहुत से कल्पना में लीन होते हैं या चुपचाप अपने साथी के साथ बातें कर रहे होते हैं १
यदि कक्षा बिलकुल शांत हो कर पूरे मन से अध्यापक की बात सुने....तो कमाल न हो जाये???
परन्तु
ये कमाल होता नहीं....हर कक्षा में कुछ एक ऐसे विद्यार्थी अवश्य ही होतें हैं जो इस कमाल को होने ही नहीं देते १
एक कविता है ..........जिसमें कवि आह्वान करता है यदि सारे विश्व के लोग कुछ पलों के लिए अपने सभी कार्य छोड़ कर चुपचाप ऑंखें बंद कर के आत्मविश्लेषण करें तो कमाल हो जाये १
कल्पना
करो एक आतंकवादी जो कोई विस्फोट करने जा रहा हो ......वह अपने गलत कार्य को कुछ पलों के लिए छोड़ नहीं देगा?
सभी अपराधी अपने अपराध कुछ [पलों के लिए छोड़ देंगें१
इसका लाभ यह होगा कि जब बुरे लोग आत्म विश्लेषण करेंगे तो वे अपने द्वारा किये गए बुरे कार्यों पर मनन करेंगे १
हो सकता है उन बुरे लोगों के मन में कोई परिवर्तन आ जाये या वे परिवर्तन कि प्रकिर्या पर कार्य करना आरम्भ कर दें?
Do not waste your energy in useless
thoughts and actions.
I know such
people who begin their day in a very natural way.
I have seen such people also who begin their
day in a very tense manner.
Let’s meet
the people who begin their day in a stressful manner.
Such people, first of all, feel tense
to notice their wives and children sleeping when they themselves are awake.
You may find one grumbling, “Nothing
can be done to them. Many times I have told her to wake up early in the morning
so that the children also become habitual of it. I woke at 4 a. m……have
returned after walking for one hour….she is still sleeping. She can wake up the
children and make them sit fro studying.
These gentlemen go to sleep late at
night. They do not get sleep properly because when they go to bed, they try to
sleep while thinking about so many plans about tommow.
When someone goes to bed with a
plethora of plans in his mind, sleep eludes him or her.
When their sleep is broken at
midnight due to some disturbance or some natural call, the reel of planning
resumes in their mind.
As a result of it, they have to leave
the bed at 4 a. m.
After coming back from walking, they
waste their energy on waking their children and wives.
How the rest of their day passes, you
can well imagine!
It will be better to listen to some
favourite music, ghazal, song or bhajan at the low pitch of sound when you wish
to go into the lap of sleep. Gradually you will be enjoying sound sleep while
the music is on to soothe your tired mind.
Some people go to sleep while
watching their favourite programme on TV.
The best formula to enter into the
realm of sleep is to work hard during the day. You will fall asleep on time.
Please keep your mind serene and
keep your problems at bay. Do not get overpowered by them.
Analyse them to find their
solutions. After analyzing them, find out solutions to them if you have any.
If you don’t have solution for some,
take advice of any of your most trusted friend. If you find no solution form
him or her, then leave those problems to God and forget about them. Whatever be
the consequence, take it as the will of God Almighty.
Always believe in the tenet that
whatever God does, He does it for our welfare.
After that, you get pleasure or
pain, joy or sorrow; accept them as the gift from God.
Neither joy nor sorrow remains
forever. They come and go; come and go….
Nothing is permanent in this world
of flux.
So, friends, make your life simple
and natural.
I have seen some people walking.
Some people like to walk in a group.
If you watch these people with rapt
attention, you will come to know that, among them, there is a leader-type
person who is followed by ten or twelve persons walking behind him fast.
That leader-type person is speaking
at a louder pitch of his voice. He is cursing the political party with whom he
has no alliance. He is abusing it. He considers himself ‘Knowledgeable’ while
ignorant to those who are his silent listeners.
Sometimes it so happens that one of
his group members snaps the thread of his argument or claims. Then ‘Mahabharta’
takes place!!!
Some people prefer walking alone in a
small group. Peacefully.
Such people keep a stock of huge
energy within themselves. This energy benefits them throughout the day.
Some teachers waste their stock of
energy in gossiping while sitting in the staff room in their vacant periods
while they can save it or utilize it in preparing for their next period.
Some of the teachers use their vacant
period negatively by talking about useless things, by satirizing the working
style of the principal or criticizing their opponent teachers or talking about
politics.
It’s okay that they should also talk
on politics. But do it only when you are vacant after completing your pending
work.
Students are also not far behind in
wasting their energy.
When the teacher is teaching in the
class, many of them are lost in their dream worlds or secretly talking with
their partners.
Would it not be a wonderful experience
if the full class listens to the teacher with full attention silently?
But such miracle does not happen in
the class-rooms!
Every class has such students who are
designed to stop such miracle happen.
There is a beautiful poem ‘Keeping
Quiet’ by Pablo Neruda.
The poet imagines that if all the
people of the world sit in silence for a few seconds suspending their all
physical activities and start introspecting themselves, it would really be a
wonderful experience.
Imagine that a terrorist, who is
going to blast, suspends his nefarious task for a few seconds.
All the criminals will suspend their
crimes for a few seconds.
This will lead to the benefit that the wicked
people while doing introspection might start thinking on their evil deeds which
they performed in the past. It may be possible that there occurs some change in
their mind to abandon evil deeds or the process towards positivism might begin in them!!!
रविवार, 14 फ़रवरी 2016
Road Rage Incidents: Outcome of What?
Feb 14, 2016
Monday
Good morning friends!
Sorry for the delay in visiting the site!
Friends, I was thinking to write about something unique, but the problem of choice created delay in writing.
The unique thought has not visited my mind today also.
But I am resolute to give some food for the soul.
Yesterday, I was coming from my native village. On the way, I saw two persons quarrelling. One was shouting at the other in loud voice and the other was not reacting so fiercely as the first one.
I went near them and came to know that it was the case of road rage.
People lose patience on roads and reach the verge of killing the other if any of them happens to overtake the vehicle or if the vehicle is rubbed due to rush on the road or due to carelessness.
In some cases, murders also take place.
You might be thinking that it happened because the other person had caused damage to the vehicle.
In my humble opinion, the cause lies somewhere else.
We attach ourselves to the material things so much that we cannot tolerate the least damage to them. We have become too much possessive!
Issues can be resolved amicably.
Sometimes we see children fighting on toys; the same thing we grown ups do.
If someone happens to hit your car from behind in cities like Delhi where the vehicles don't run but crawl following at the hit-prone distance, try to place yourself in his position and you will find the answer and then you will not lose patience. If the damage is minor, you should say "It's olay."
If the damage is substantial, you should try to resolve the issue amicably.
Do not let your ego bubble up if the other person is bent on quarrelling. These incidents are the outcome of sheer dissatisfaction in life and mental pressure.
In that case, losing temper will aggravate the situation. Note down the number of vehicle take a photograph and call the police.
In some cases the situation does not remain in your control; in that case think and decide reasonably.
That's all for today.
Have a nice day!
Monday
Good morning friends!
Sorry for the delay in visiting the site!
Friends, I was thinking to write about something unique, but the problem of choice created delay in writing.
The unique thought has not visited my mind today also.
But I am resolute to give some food for the soul.
Yesterday, I was coming from my native village. On the way, I saw two persons quarrelling. One was shouting at the other in loud voice and the other was not reacting so fiercely as the first one.
I went near them and came to know that it was the case of road rage.
People lose patience on roads and reach the verge of killing the other if any of them happens to overtake the vehicle or if the vehicle is rubbed due to rush on the road or due to carelessness.
In some cases, murders also take place.
You might be thinking that it happened because the other person had caused damage to the vehicle.
In my humble opinion, the cause lies somewhere else.
We attach ourselves to the material things so much that we cannot tolerate the least damage to them. We have become too much possessive!
Issues can be resolved amicably.
Sometimes we see children fighting on toys; the same thing we grown ups do.
If someone happens to hit your car from behind in cities like Delhi where the vehicles don't run but crawl following at the hit-prone distance, try to place yourself in his position and you will find the answer and then you will not lose patience. If the damage is minor, you should say "It's olay."
If the damage is substantial, you should try to resolve the issue amicably.
Do not let your ego bubble up if the other person is bent on quarrelling. These incidents are the outcome of sheer dissatisfaction in life and mental pressure.
In that case, losing temper will aggravate the situation. Note down the number of vehicle take a photograph and call the police.
In some cases the situation does not remain in your control; in that case think and decide reasonably.
That's all for today.
Have a nice day!
मंगलवार, 24 नवंबर 2015
विद्यार्थी और शारीरिक दंड: Students and Physical Punishment
नमस्कार दोस्तों!
आज गुरु नानक देवजी के जन्म दिवस पर सब को बधाई!
कई दिनों से हिंदी में कुछ लिखने की सोच रहा था, आज सवेरे कुछ विद्यार्थियों की पोस्ट पर शारीरिक दंड के बारे में अपनी टिप्पणी लिख रहा था तो सोचा इसी विषय पर मैं अपने कुछ विचार आप सबके लिए लिख दूँ १
परन्तु मैं यह भी चाहता हूँ कि आप अपने विचार भी टिप्पणी के रूप में गूगल प्लस पर अवश्य लिखें १
दंड का प्रावधान समाज में सदियों से चलता आ रहा है १ गुरु अपने शिष्यों को शारीरिक दंड सकारात्मक ढंग से सदैव देते रहे हैं ताकि विद्यार्थी के मन में शारीरिक दंड से उत्पन्न होने वाली असुविधा या पीड़ा का आभास हो और वह उसके मन में उस दंड का भय हो १
फलस्वरूप वह विद्यार्थी भविष्य में अपनी गलती न दोहराये१
एक ज़माना था जब कुछ अभिभावक अध्यापक को यह कहने आते थे कि आप बच्चों में सुधार लाने के लिए शारीरिक दंड अवश्य दीजिये१
परन्तु बदले की भावना के कारण और विद्यार्थियों को ट्यूशन के लिए विवश करने के लिए कुछ अध्यापकों ने शारीरिक दंड का प्रयोग किया है जिसके कारण इस प्रथा पर पाबन्दी लग चुकी है १
मेरा यह मानना है कि पाबन्दी अभिभावकों पर घर में बच्चों को शारीरिक दंड देने पर भी होनी चाहिए ताकि बच्चे दोनों जगह शैरीरिक दंड के भोगी न बनें १
होना तो यह चाहिए कि हम सब बिना किसी भय के अपना कार्य निष्ठां से करते जाएँ १
परन्तु आप सब जानते हैं कि अधिकतर लोग दबाव और भय में अपने कर्तव्यों के प्रति अधिक सक्रिय होते हैं १
जब ट्रैफिक पुलिस अधिक सख्त और सक्रिय हो जाती है तो लोग नियमों का अनुपालन भी करने लग जाते हैं १
हमारे बच्चे भी तो यही सब देख और महसूस कर रहे हैं १ जब हम बड़े लोग भी अपने कार्यों में टालमटोल करते हैं, नियम तोड़ रहे होते हैं तो बच्चे ऐसा क्यों नहीं करेंगे ?
घर में माता पिता बच्चे को डरा धमका कर अपना कार्य तो करवा लेते हैं परन्तु जब अध्यापकों को अपना दिया हुआ कार्य करवाने की बात आती है तो उन्हें कोई डराए या धमकाए भी न?
दोहरे मापदंड हैं ये!
आज विद्यालयों में अध्यापकों के लिए बच्चों को पढ़ाना अति कठिन हो गया है १
कुछ विद्यार्थी अपनी उदंडता दिखाते ही रहते हैं : अध्यापक उन्हें क्लास से बाहर निकालता रहता है और वे विद्यार्थी इसमें भी आनंद का अनुभव करते रहते हैं १ बहुत से बच्चे अपना कार्य नियमित रूप से नहीं करते ,न ही वे अपनी पुस्तकों और कापियों का ध्यान रखते हैं.....उन्हें कैसे सुधारे...........???
आज गुरु नानक देवजी के जन्म दिवस पर सब को बधाई!
कई दिनों से हिंदी में कुछ लिखने की सोच रहा था, आज सवेरे कुछ विद्यार्थियों की पोस्ट पर शारीरिक दंड के बारे में अपनी टिप्पणी लिख रहा था तो सोचा इसी विषय पर मैं अपने कुछ विचार आप सबके लिए लिख दूँ १
परन्तु मैं यह भी चाहता हूँ कि आप अपने विचार भी टिप्पणी के रूप में गूगल प्लस पर अवश्य लिखें १
दंड का प्रावधान समाज में सदियों से चलता आ रहा है १ गुरु अपने शिष्यों को शारीरिक दंड सकारात्मक ढंग से सदैव देते रहे हैं ताकि विद्यार्थी के मन में शारीरिक दंड से उत्पन्न होने वाली असुविधा या पीड़ा का आभास हो और वह उसके मन में उस दंड का भय हो १
फलस्वरूप वह विद्यार्थी भविष्य में अपनी गलती न दोहराये१
एक ज़माना था जब कुछ अभिभावक अध्यापक को यह कहने आते थे कि आप बच्चों में सुधार लाने के लिए शारीरिक दंड अवश्य दीजिये१
परन्तु बदले की भावना के कारण और विद्यार्थियों को ट्यूशन के लिए विवश करने के लिए कुछ अध्यापकों ने शारीरिक दंड का प्रयोग किया है जिसके कारण इस प्रथा पर पाबन्दी लग चुकी है १
मेरा यह मानना है कि पाबन्दी अभिभावकों पर घर में बच्चों को शारीरिक दंड देने पर भी होनी चाहिए ताकि बच्चे दोनों जगह शैरीरिक दंड के भोगी न बनें १
होना तो यह चाहिए कि हम सब बिना किसी भय के अपना कार्य निष्ठां से करते जाएँ १
परन्तु आप सब जानते हैं कि अधिकतर लोग दबाव और भय में अपने कर्तव्यों के प्रति अधिक सक्रिय होते हैं १
जब ट्रैफिक पुलिस अधिक सख्त और सक्रिय हो जाती है तो लोग नियमों का अनुपालन भी करने लग जाते हैं १
हमारे बच्चे भी तो यही सब देख और महसूस कर रहे हैं १ जब हम बड़े लोग भी अपने कार्यों में टालमटोल करते हैं, नियम तोड़ रहे होते हैं तो बच्चे ऐसा क्यों नहीं करेंगे ?
घर में माता पिता बच्चे को डरा धमका कर अपना कार्य तो करवा लेते हैं परन्तु जब अध्यापकों को अपना दिया हुआ कार्य करवाने की बात आती है तो उन्हें कोई डराए या धमकाए भी न?
दोहरे मापदंड हैं ये!
आज विद्यालयों में अध्यापकों के लिए बच्चों को पढ़ाना अति कठिन हो गया है १
कुछ विद्यार्थी अपनी उदंडता दिखाते ही रहते हैं : अध्यापक उन्हें क्लास से बाहर निकालता रहता है और वे विद्यार्थी इसमें भी आनंद का अनुभव करते रहते हैं १ बहुत से बच्चे अपना कार्य नियमित रूप से नहीं करते ,न ही वे अपनी पुस्तकों और कापियों का ध्यान रखते हैं.....उन्हें कैसे सुधारे...........???
रविवार, 22 नवंबर 2015
Conflict between Body and Soul
Suppose you never
drive your car and you have a driver of your own. You are very happy with him
as he drives your vehicle safely following all the rules of traffic and makes
you reach your destination in time.
If he starts
disobeying you and reverses all what he had been doing in the past, what will
you think of him?
Now he does not care for the traffic rules,
nor does he make you reach your destination on time. How would you react?
Certainly,
you would react strongly? You may also decide to sack him if he refuses to
comply with your orders.
Friends, similar
is the case with our body.
Our soul is
the master and the Body is the servant, like the driver quoted in the above
example.
If our Body disobeys
the Soul, it would lead to disintegration and in that case neither the body nor
the soul would progress.
Our activities
are controlled by our mind. All of us experience two types of voices within us,
one is of righteousness and the second is of deviation from the righteousness.
The first
voice is known as the divine element, the Soul (the Atma) and the second voice seems
to be of our mind. People differently
name it. But I would not name it in the traditional manner. I would call it the
voice of our Self (Body) that has so many desires to feed on.
Some desires
are basic and very necessary for the survival of our Body. We are well
acquainted with these.
But still,
our Soul does not permit the Body to satisfy even the necessary desires in
excess. It always interferes with the Body, when it demands more.
When the
body starts dominating our Soul, the degeneration starts.
So always
try to tame your Body that only needs ‘Kha lo, pi lo aur so lo’.
Feed and
ignite your Soul with your good thoughts so that actions would also be good.
गुरुवार, 12 नवंबर 2015
Talking about Human Relationships: Part One
Accept a Person as a Whole, not in Parts
‘To err is
human and forgive divine.'
We have been
listening to people reading or speaking about this old saying since the days of
our childhood.
But in spite
of that we are not ready to forgive others’ mistakes. Rather some of us may be
waiting for others to commit mistakes so that we may have a chance to condemn or
laugh at them.
On the other
hand, when we find ourselves in the same situation, we get easily flared up and
expect others to behave themselves in that situation.
It means
that we have double standards. We do not want the same type of rough behaviour that
we have showed to others in our near past. We forget easily or we do not want
to reflect back to our past behaviour.
If we place
ourselves in the same situation as the other person is at present, a good
change may take place in our beings.
We should
forgive others believing the old proverb that ‘to err is human and forgive
divine.’
Another fact
I would like to mention here is that when we make any type of relationship with
others, first we must become doubly sure if the person with whom we wish to go
ahead in relationship is compatible to us or not.
Keep in mind
that the person is a human being, not any divine entity, who is not prone to
commit errors. He/she can commit mistakes in life as you also do. Keep space in
your mind for this and then go ahead with relationship.
Nurture your
relationship with mutual understanding and forgiveness. Be tolerant to each
other’s faults and try not to repeat the mistake once committed.
After that,
see how the plant of your relationship grows up in a healthy and tall tree,
blessing you with its fruits for the whole life.
मंगलवार, 10 नवंबर 2015
हैप्पी दिवाली...सब के लिए होनी चाहिए...!!! Make Happy Diwali for All...!!!
सर्वप्रथम आप सब को मै
अपनी ऒर से दीवाली की ढेर सारी शुभकामनायें देता हूँ १
दीवाली
आप सब के जीवन में सुख, शांति एवं समृद्धि लाये!
दीवाली
हम सब का एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है १
इस त्यौहार को पूरी श्रद्धा एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है १
पुरानी परम्पराओं
के अनुसार मिट्टी के दीयों में सरसों का तेल डाल कर उन्हें प्रज्वलित किया जाता है १
समय के साथ-साथ मिटटी के दीयों का स्थान मोमबत्ती तथा बिजली की लड़ियों ने ले लिया है १
लोग अपनी ख़ुशी को तरह तरह से प्रकट करते हैं १ इसका उन्हें हक़ भी है १
परन्तु
पठाखे इतनी अधिक मात्रा में फोड़े जाते
हैं कि उनसे होने वाला ध्वनि व् वायु प्रदुषण इस धरा पर रहने वाले अनेकों जीव-जंतुओं, पशु- पक्षियों के लिए प्राणघातक सिद्ध होता है १
शायद हम भूल जाते हैं कि इस धरा पर पशु-पक्षी जो हमारे आस-पास रहते हैं, उनका भी जीने का पूरा अधिकार है१
वे बेचारे दिवाली की रात को सहम जाते हैं और पता नहीं कितने उनमें से मर भी जाते हैं १
न केवल पशु पक्षी, हम इंसान भी इस ध्वनि व् वायु प्रदुषण से प्रभावित होते हैं १
आपके पड़ोस में कोई बीमार व्यक्ति हो सकता है, कोई नव-जनमा शिशु हो सकता है, या कोई वृद्ध व्यक्ति !
कृपया अपनी संवेदना को जगाये रखिये१
सदैव ऐसा सोचिये कि आप अपने कार्य से अनजाने में किसी को दुःख तो नहीं पहुंचा रहे हो?
आप ऐसा बिलकुल भी मत सोचिये कि जब अन्य लोग ऐसा कर रहे है, तो 'हम' ऐसा क्यों न करें?
हम स्वं को बदल सकते हैं .....फिर प्रयत्न कीजिये दूसरों को, जो आप के नज़दीकी लोग हैं, यह बात समझने का १
शायद उनमें भी कभी बदलाव आ जाये!
इस उम्मीद के साथ एक बार फिर आप सब को दीपावली की शुभकामनायें!
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